इंतजार
ये इंतजार भी अजीब चीज़ है,
न पूरी तरह रोने देती है,
न खुलकर जीने देती है,
फिर भी हर मोड़ पर साथ निभाती है।
बचपन में बड़े होने का इंतजार,
स्कूल में छुट्टियों के आने का इंतजार।
गर्मी की छुट्टियों से पहले,
पेपर खत्म होने का इंतजार।
थोड़ा और बड़े हुए,
तो कॉलेज लाइफ जीने का इंतजार।
कॉलेज पहुँचे, तो दोस्तों के साथ बिताए पलों का इंतजार।
कभी क्लास खत्म होने का, तो कभी किसी ख़ास से मिलने का इंतजार।
फिर करियर की दौड़ में शामिल हुए,
तो नौकरी के लिए संघर्ष का इंतजार।
फॉर्म भरा तो परीक्षा की तारीख का इंतजार,
परीक्षा दी तो रिजल्ट का इंतजार।
अगर मनमाफिक न निकला,
तो अगली कोशिश का इंतजार।
नौकरी लगी तो सैलरी का इंतजार,
पहली कमाई से परिवार की खुशी देखने का इंतजार।
ख्वाब पूरे होने लगे,
तो ज़िंदगी संवरने का इंतजार।
पर कहीं न कहीं,
ये इंतजार कभी खत्म नहीं होता।
हर खुशी, हर सफलता के बाद,
एक नए इंतजार की शुरुआत होती है।
शायद यही ज़िंदगी है—
इंतजार और उम्मीदों के बीच बीतती हुई,
हर मोड़ पर एक नई मंज़िल का इंतजार करती हुई।