आखिर कब तक मुझे गलत समझा जाएगा?
कब तक मैं बेगुनाह होते हुए भी इल्ज़ाम उठाती रहूंगी?
क्यों हर बार मुझे ही दोषी ठहरा कर,
बेपरवाह निकल जाता है ये ज़माना?
ठीक है, अगर यही नियम है दुनिया का,
तो मान लिया—आप जीत गए, हम हार गए।
पर याद रखना, हर हार हमेशा हार नहीं होती,
और हर जीत हमेशा जीत नहीं होती।
कभी वक्त से पूछना,
किसने खुद को खोया और कौन खुद को पाया।
सच को जितनी बार भी झुठलाओ,
एक दिन वो उजाले की तरह लौटकर आता है।