डर अंधेरे सा छुपा रहता,
मन की गलियों में गूंजता,
कभी सन्नाटे में सहमाता,
कभी तुफानों सा गरजता।
छोटे थे तो परियों के किस्से,
डर भगाने आते थे,
अब हकीकत के साए हैं,
जो रातों में डराते हैं।
पर डर तो बस एक भ्रम है,
सोच का जाल है,
जो हिम्मत से कदम बढ़ाए,
उसके आगे बेहाल है।
चलो, इस डर को हराएं,
सपनों को सच बनाएं,
जहां हौसला हो उजाला,
डर खुद अंधेरा बन जाए।