नज़रें
पता नहीं ये आँखें कितना कुछ कह जाती हैं,
और कहती भी हैं तो हर किसी का अंदाज़ अलग होता है।
ख़ुशी में ये सूरज-सी चमक उठती हैं,
ग़म में मानो काले बादल छा गए हों।
तनाव में ये लाल अंगारे-सी दहक जाती हैं,
तो सफलता पर इनमें फूलों की बारिश होने लगती है।
ये नज़रें अजीब होती हैं...
दोस्तों के लिए जन्मों-जन्मों का रिश्ता बना लेती हैं,
तो दुश्मनों के लिए गर्म पानी की तरह उबाल मारती हैं।
कभी प्यार से महकती हैं, कभी नफरत में सुलगती हैं,
कभी मासूमियत की दरिया बन जाती हैं,
तो कभी बेबसी की झील में डूब जाती हैं।
सच में, ये आँखें सिर्फ़ देखती ही नहीं,
बिन कहे सब कुछ कह भी जाती हैं।